Flower obstinance
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Flower obstinance |
Flower obstinance
एक फूल की जिदसुमन ,पुष्प या फूल कहूँ,
या कह दूँ कि गुलनार हो तुम,
राजा,रानी या रंक सही,
सबके गले का हार हो तुम।।
लग बेली के तू जूडे में,
हँसती ठिठलाती आती हो,
शक्ति ओ औधढदानी के,
सिर चढ कर तूँ इठलाती हो।
हो लाल ,पीली गर्वित घमंड
पतझढ में भी बहार हो तुम।
सब सोते रहते ,तुमको कह दूँ,
रातों में पहरेदार हो तुम ।।
नदी ,अहार ,पहाडों में,
रेगिस्तानों ओ पठारों में,
धँस कीचड में भी खिल जाती,
जीवन जीने की ऐसी जिद,
जीवन दर्शन समझा जाती,
बस बात यही तुमसे करना,
जाकर उससे तुमको लडना,
हताश,निराश दिखे मानव,
जीवन सुंगध जाकर भरना।।
काँटो में रहने की तेरी जिद,
उसको भी समझा जायेगी,
कोमलता के अंदर की ताकत,
फिर उसको भी भरमायेगी,
कोमल,कठोर जो कहो कहूँ,
जीवन-संघर्ष राजदार हो तुम,
ऐ चंपा,चमेली,बेला, जूही,
चलो कह देता कचनार हो तुम।।
- Onkar
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