Gandhari Krishna Conversation | गांधारी कृष्ण संवाद

Gandhari Krishna Conversation


गांधारी कृष्ण संवाद

Gandhari Krishna Conversation, LORD KRISHNA
LORD KRISHNA 



लोभ, मोह, छल, प्रपंच,
सियासत,सत्ता और दुनियांदारी,
ले आया था भयानक मोड़ पर,
आखों की पट्टी खोले देख रही  गांधारी ।।

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Gandhari aur Krishna
अब आगे....)

हर जीव जंतु चेतन ,
गरीब हो या कोई महारानी ,
पुत्र सर्वज्ञ या कुपुत्र सही,
उसकी मौत? कैसे सहे कोई माता रानी ?

पुत्र प्रेम में अक्सर ही,
आ जाती लाचारी,
न्याय विवेचन फिर कहाँ,
मति जाती है मारी ।।

कहाँ समझ आ पाता जब,
तराजू हाथ में आता है,
पक्ष सामने पुत्र का हो,
पलड़ा उधर झुक जाता है।।

रक्त अपना ही जब बिखरा देखा,
 वह भी थी आखिर नारी,
ज्वाल लहर धारा फूटी,
फिर चीख उठी थी गंधारी ।।

हे कृष्ण कहाँ हो,सामने आओ,
आकर बस इतना बतलाओ,
ये मौत अनगिनत का क्या तुम,
हो दोषी नहीं जरा समझाओ ?

सौ पुत्र हैं मेरे मारे गए,
हैं मरे अनेकों हस्तिनापुर वीर ,
ये रक्त की नदियाँ बही हुई,
क्यों फूट गई मेरी तकदीर ?

हे निर्मोही ये तो बता,
धूल क्यों आसमां है भरी हूई,
सौ पुत्रों की थी जो माता ,
बिन पुत्र की माता क्योंकर हुई ?

शेष भी अब तो अशेष हुई,
लाई ऐसी क्यों महामारी ,
खेला क्यों ऐसा खेल कहो,
क्यों लाल हुई नदियाँ सारी ?

गुस्से में ऐसी भरी थी वो,
हर रोम निकल रही चिंगारी,
शब्द झाग बने और उड़ते रहे,
प्रश्न पूछ रही थी गंधारी ।।

ये युद्ध का कारण एक तुम्हीं,
शांति को बल मिल सकता था,
गांधारी बोली  हे मोहन,
गर चाहते,युद्ध टल सकता था ।।

थे खडे मौन निर्विकार बने,
अंदाज ही अलबत्त निराला,
भाव शुन्य मगर साकार बने,
फिर बोल उठे वंशीवाला ।।

हे माता ये तो सत्य कही,
चाहता तो बल मिल सकता था,
गर एक इशारा कर देता,
तो युद्ध वहीं टल सकता था ।।

हूँ सार भी मैं निस्सार भी मैंं,
रोशनी भी मैं अंधकार भी मैं,
निर्विकार कहो,साकार कहो,
इस पार भी मैं,उस पार भी मैं।।

जड चेतन और सब प्राणी,
कण कण में मैं हूँ सुन माता,
शेष भी मैं और अशेष भी मैं,
पत्ता भी यूँ नहीं हिल पाता ।।

हर रथ मेंं मैं ही था बैठा ,
हर ओर मेरा ही डेरा था,
महाभारत में बस हरेक तीर,
जो चला था वो सब मेरा था ।।

सत्य सुनो मन में गुन लो,
जो युद्ध वेग वहाँ आया था,
महाभारत  में चला हरेक तीर,
सिर्फ कृष्ण ने ही चलाया था ।।


ये सत्य है कुछ भी असत्य नहीं,
हर तीर चलाया कृष्ण ने था,
जिसे तीर लगी वह भी कृष्ण ही था,
हर तीर बस कृष्णा ने ही खाया था।।

कोई और वहाँ दूजा नहीं था,
बस मैं ही,सब कुछ मेरा था,
हर घाव था झेला खुद मैने,
जो खून बहा सब मेरा  था ।।
                            (continue )
LORD KRISHNA


         

















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1) गांधारी और कृष्णा ..पहला भाग

2) सीता माता का जबाब पहला भाग

3) सीता माता का जबाब दूसरा भाग

4) उर्मिला और लक्ष्मण

5) एक फुल की जिद

6) हम तो बस माँ माँ कहते

7) प्रकृति और प्रेम (फुल और भौरा )

External Links -

i)  who was Gandhari ?

ii)   Lord Krishna ?





























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