Sita Mata Ka Jbab । सीता माता का जबाब

Sita Mata Ka Jbab

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Sita Aur Ram

















Sita Mata Ka Jbab

सीता माता का जबाब

सघन था जंगल,धुप्प अंधेरा,
वनचर आवाजें आती थी,
विद्रूप रूप की अंधेरों में ,
बरवस वहम हो जाती थी।।

वनराज भी था,गजराज भी था,
सन्नाटा ओ कर्कश आवाज भी था,
उल्लु की घूमती आँखे,
बजता झिंगुर का साज भी था।।

थी मेघों की अफरा तफरी,
तुफां भी कब आ जाए,
चंदा की आँख मिचौनी भी,
अच्छे अच्छे थर्रा जाए।।

पर रूको कहानी और भी है,
घने जंगल एक ठौर भी है,
लवकुश से है सजी झोपडी,
वनचर बीच कोई और भी है।।

दो फूल गोद में लिये हुए,
बैठी ये सुकुमारी है,
सुन्दरता ईश्वर की गढी हुई,
कौन है ? कहाँ की नारी है ?


तभी श्रृषि अचानक प्रकट हुए,
मय तेजदीप और थे ज्ञाता,
कुछ कहा तो तंद्रा कौंध गयी,
अरे ये तो है सीता माता।।

हे दयावान ,हे शिवदानी,
ये कैसी कहानी रच डाली,
हे मन मतंग औघढदानी,
प्याले मे भंग क्यों ज्यादा डाली।।

सब खेल तुम्हारा ही होता,
 रचना ये कैसी रच देते,
खेबैया कौन ?  बीच धार नाव,
उस पार किनारा दे देते।।

हैं राम पति जिनके उनको,
फिर कैसे कहूँ अबला नारी,
दशरथ ,जनक जिनके परिजन,
थी  कौन सी ऐसी लाचारी।।

जो महलो में रहने वाली,
हे राम, जंगल मे क्यों छोड दिया ,
क्या अहंकार पौरूष का था,
तो धनुष तुमने क्यों तोड दिया।।

दे पत्नी को ऐसा दुःख दर्द,
पतियों का ये काम नहीं,
भय नहीं खुले में कहता हूँ,
तुम मर्यादा पुरूषोत्तम राम नहीं।।

औरत को कमतर आंका,
क्यों किया भेद ये तुम जानो,
अब लाख बहाने गढ डालो,
है गलत किया इसको मानो।।

तभी श्रृषि ने ये चुपचाप कहा,
सुन 'सीते' राम अब आएगा,
भूल अपनी शायद समझ गया,
आकर तुमको ले जायेगा ।।

कोई तरंग सजी ,कहीं मृदंग बजी,
लय सुर गीत झंकार किया,
हृदय तरंगित, मोहित मन,
बंद आँखों में उन्हें साकार किया ।।

तभी टीस उठी, आत्मा रोई,
फिर मन ही मन में ये ठाना,
हे पतिदेव ,हे बलशाली,
कमजोर  मुझे  कहो क्यों माना ?

मैं औरत हूँ ,तुम पुरूष सही,
ताकत लेकिन अधूरी है ,
अस्तित्व के दो पहिये हैं,
दुनियां तभी सिंधुरी है।।

                      ( पार्ट -1) - Writer Onkar
Part -2 Coming soon.
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1) सीता माता का जबाब पार्ट 2

2) Urmila aur Laxman

3) फूल की जिद

4) प्रकृति और प्रेम

5) हम तो बस माँ माँ कहते













Comments

Anonymous said…
बहुत खूब लिखा है आपने ।