पत्नी करे पति का मानसिक उत्पीड़न तो क्या करें ?

पत्नी करे पति का मानसिक उत्पीड़न तो क्या करें ?


पत्नी करे पति का मानसिक उत्पीड़न तो क्या करें ?
पत्नी करे पति का मानसिक उत्पीड़न तो क्या करें ?


पति द्वारा पत्नी पर अत्याचार ,उत्पीड़न, दहेज की मांग और ना मिलने पर मारपीट की घटनाएं आए दिन हम समाचार पत्रों में सुनते रहते हैं। लेकिन सिक्के के हमेशा दो पहलु होते हैं। हमेशा पतियों की ही गलती नहीं होती। आज हम पतियों के संबंध में बात करेंगे। यदि आप पतियों की अपने पत्नियों से उत्पीडऩ होने पर क्या करना चाहिए और क्या क्या युक्तियां करे और कानून उन्हें help कैसे कर सकते हैं ये जानना चाहते हैं तो पूरे आलेख को ध्यान से पढ़ें।यद्यपि हम हिन्दु विधि के तहत कानून की चर्चा कर रहे हैं लेकिन बहुत सारे उपाय इसमें जो बताये गये हैं वो मुस्लिम पतियों पर भी लागू होते हैं।

पत्नियों के लिए बने कानून पतियों के जी का जंजाल बने।


बहुत हल्ला होता था कि महिलाओं पर,पत्नियों पर पति अत्याचार करते हैं तो सरकार ने काफी सख्त फौजदारी कानून बना दिये। खासकर भारतीत दंड विधान की धारा 498 A एक ऐसा कठोर धारा है जिसने लाखों पतियों का जीवन बर्बाद कर दिया। उनके परिवार बर्बाद होकर बिखर गए।बीच बीच मे विभिन्न न्यायालयों ने भी नियमन देकर इसे और भी सख्त कर दिया। उपरोक्त वर्णित धारा 498 A में साधारण तया " दहेज को लेकर पत्नियों को torturing करना" शामिल था । इसे संज्ञेय और अजमानतीय बनाया गया है । बाद में नियमन आया कि torturing म़े शारीरिक ही नहीं मानसिक तत्व भी शामिल हैं। मतलब ये हुआ की कोई पति यदि अपनी पत्नी को मारपीट नहीं भी करता है बल्कि दहेज लेकर धमकी भी देता है तो वह मामले धारा 498 A के तहत अपराध किए समझे जाएंगे। मतलब पत्नी यदि मायके में भी रह रही है और कोई पति मोबाइल से भी धमकी दे दे तो पत्नी का मानसिक उत्पीडऩ किया गया माना जायगा और पत्नी यदि मुकदमा दर्ज करा दे तो पति को जेल की हवा खानी पड़ेगी।

 लेकिन कानून के सख्त रहने पर इसके दुरूपयोग की संभावना भी रहती है। इस मामले में यही हुआ । बेचारे लाखों निर्दोष पति बर्बाद हो गये और बिखर गये। आंकड़ा गवाह है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय नें भी इन तथ्यों को महसूस किया और नियमन दिया कि धारा 498 A के तहत मामला दर्ज होने पर तुरंत गिरफ्तारी न करके पहले तथ्यों की जाँच {investigation} की जाय । एक बात और जब पत्नी ऐसे मामलों में मुकदमा दर्ज कराती थी तो पति के नाते रिश्तेदारों को भी घसीट लेती थी। यानी अपने सास ससुर देवर ननद इत्यादि को भी अभियुक्त अक्सर बनाती ही थी। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अब अपने नियमन से थोड़ी राहत दी है। अब आमतौर पर पति के नाते रिश्तेदारों को न्यायालय जमानत दे देती है लेकिन पति बेचारा लटक जाता है।


पत्नी की धमकियां और मानसिक प्रताड़ना 



मैंने उपर मुख्य बातों की चर्चा कर दी कि आगे समझने में आसानी रहे। पत्नी अक्सर दहेज torturing का यानी 498 A धारा में ही फंसाने की धमकी देती है। भारत के मशहूर क्रिकेटर मो. शमी पर भी अन्य धाराओं के साथ 498 A के तहत ही उनकी पत्नी ने मुकदमा किया है। लेकिन माननीय सर्वोच्च न्यायालय के " तथ्यों का investigation first " वाले दिशा निर्देश के कारण ही पुलिस ने तत्काल मो. शमी के विरूद्ध गिरफ्तारी की कार्यवाही नहीं की।

पत्नी किस तरह का धमकी देती है या दे सकती है।


1) पत्नी अपने पति को अपने इशारे पर नचाने हेतु कुछ भी कर सकती है।वह पति को उनके माता पिता से अलग रहने का दबाव बना सकती है।

2) कमाई के पैसे पति अपने माँ बाप भाई बहन को ना दिया करे,मदद ना किया करे कह सकती है।

3) पत्नी पति से सारे कमाई के पैसे मांग सकती है जिससे कि पति अपने माँ बाप भाई बहन या अन्य जरूरतमंद रिश्तेदार की मदद ना कर सके।

4) पत्नी पति पर अपने मायके में रहने का दबाव बना सकती है।

5) अन्यान्य कारण हो सकते हैं।

पत्नी अक्सर बात ना मानने पर पति को मुकदमें में फँसा देने की धयकी देती है। उसकी बात ना मानने की स्थिति में आत्महत्या की धमकी देना ,मायके चला जाना,अपने पिता माता भाई से धमकी दिलवाना एवं 498 A के तहत दहेज प्रताड़ना का मुकदमा पति और उनके माँ बाप भाई बहन पर दर्ज करवाने जैसी थमकी देती है और इसी तरह के मुकदमों के कारण पतियों पर शामत आ जाती  है।

पत्नी के ऐसे धमकियों से कैसे बचा जा सकता है ?


सबसे पहले तो खुद को मानसिक रूप से  मजबूत करें। आप निर्दोष हैं तो कानून आपको सजा नहीं देगी ।कानून अपराधियों को सजा देने के लिए बनी है। आप एक भारतीय नागरिक के तरह व्यबहार करें।पत्नी के धमकी का उत्तर तो बस इसी पंक्ति में छिपा है कि आप एक नागरिक के तरह सोचें और व्यबहार करें। आइये अब इसको ही व्यापक कैनवास पर सोचें।

भारतीय कानून का तकाजा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी के  सामने अपराध करता है या अपराध की धमकी देता है तो एक नागरिक का कर्तब्य है कि वह पुलिस को सूचित करें।इसलिए ही कानून भी बना है कि प्राथमिकी कोई भी ब्यक्ति कर सकता है और ये जरूरी नहीं कि जिसके साथ घटना घटी है वही FIR (प्राथमिकी ) दर्ज करे।

F I R ( first information report) या प्राथमिकी क्या है?
पुलिस आपकी शिकायत दर्ज ना करें तो क्या उपाय है जानने के लिए लिंक पर जाएँ।

F.I . R . ( first information report ) या प्राथमिकी

1) मतलब साधारणतया ये है कि एक नागरिक को अपराध की सूचना अवश्य पुलिस को देनी चाहिए।

 2) पति को यदि पत्नी गलत धमकी देती है या झूठे मुकदमें मे फंसाने की धमकी देती है तो स्पस्टतः वह अपराध कर रही है।पति को अविलंब पत्नी के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए।

3) यदि कोई पति यह मानकर चुप रहता है कि पत्नी torturing के केश में फंसा देगी तो स्पस्टतः वह भय से चुप रहकर मामले में शान्ति की अपेक्षा कर रहा है। लेकिन इससे मामले का निदान नहीं होता। कृष्ण ने भी अर्जुन को यही कहा था कि " भय के आधार पर उपजी हुई शांति अस्थायी होती है ।"

4) स्पस्टतः जब पत्नी किसी निर्दोष पति को केवल अपनी बात मनवाने हेतु, पिता माँ से अलग करवाने हेतु , पति अपने भाई बहन जरूरतमंद रिश्तेदार की मदद ना कर सके इत्यादि कारणों से झूठे मुकदमों में खासकर 498A में यानी दहेज प्रताड़ना के मामले में फंसा देने की धमकी देती है , या कभी तो आत्महत्या कर लेने की भी  धमकी ( आत्महत्या की धमकी को अक्सर पत्नियां बड़ा हथियार के रूप में उपयोग करती है) तो पति के लिए यह आवश्यक है  की वह अविलंब अपने पत्नी के विरूद्ध पुलिस को शिकायत दर्ज करवा दे। क्योकि बाद में ना पुलिस कुछ सुनेगी ना कोई प्रशासन । बल्कि पुलिस उल्टा आपको ही दोष देगी कि यदि मामला पत्नी द्वारा झूठे मुकदमें में फंसाने की धमकी का था तो आपने किसके पास शिकायत की या सूचना दी। साफ साफ मतलब ये कि यदि आप चुप चुप करते रह गये और पत्नी ने ही मुकदमा पहले कर दिया तब आप खुद को परेशानी में डाल लेंगे।

5) तो दिल को मजबूत कर पत्नी के धमकियों पर अविलंब कार्यवाही करें। मामले आगे बढ़े उसके पहले ही कानूनी कार्यवाही कर मामले का अंतिम निदान भविष्य के लिए बेहतर है।

6) याद रखें..

क)

भारतीय दंड विधान की धारा 506 के अनुसार कोई ब्यक्ति किसी को झूठे मुकदमें में फंसा देने की धमकी देता है तो वह अपराध करता है जिसकी सजा 2 साल है। यदि धमकी उपहति कारित करने का देता है तो इसे अपराधिक अभित्रास कहा जायगा जिसकी सजा 7 वर्ष और जुर्माना भी है।

ख)

यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयत्न करेगा और ऐसा करने के लिए कोई कार्य करेगा तो वह व्यक्ति 1 वर्ष के कारावास से दंडित होगा।भारतीय दंड विधान की धारा 309 में ये प्रावधान था। हालांकि अब मोदीजी के सरकार द्वारा इस धारा में बदलाव किए गये हैं तथा इसे अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। लेकिन व्यापक छान बीन की ब्यवस्था की गई है और आप जाँच में बता सकते हैं कि आत्महत्या की धमकी केवल आपको मानसिक उत्पीड़न के लिए दी गई थी।

तो उपरोक्त धाराओं में पति प्राथमिकी दर्ज कराकर वास्तविक निदान के लिए रास्ता निकाल सकता है। इससे दो फायदे होंगे ।

पहला
ये कि पत्नी को ये समझ आ जायगा कि पति उसकी बात मानने के लिए तैयार नहीं है

दूसरे
यह भी कि पति serious है और गलत बात स्वीकार नहीं करेगा।

यदि पत्नी को समझ आ जाय तो बेहतर ।सुलह का दरवाजा भी हमेशा खुला रखें।

हिन्दु विवाह भरण पोषण अधिनियम की धारा 9 का उपयोग कर बचाव व मामले का निदान


उपरोक्त मामले का दूसरा पहलू भी है। आप परिवार न्यायालय में हिन्दु विवाह और भरणपोषण अधिनियम के धारा 9 के तहत भी मुकदमा दर्ज करा सकते हैं। प्रत्येक जिला में परिवार न्यायालय होते हैं। तो आप धारा 9 के तहत भी आगे बढ़ सकते हैं। धारा 9 के तहत आते हैं " दाम्पत्य जीवन में पुनर्सुधार " इसे अंग्रेजी में कहते हैं " Re-institution of conjugal right."

1)

यदि पति पत्नी के संबंधों में खटास आ गई हो तो संबंधों में सुधार हेतु मुकदमा दर्ज कराये जाते हैं। आप अपनी सारी बातों को ,पत्नी द्वारा किये जा रहे गलत कार्य ब्यवहारों की लिखित शिकायत परिवार न्यायालय के समक्ष कर सकते हैं।परिवार न्यायालय पति पत्नी के मध्य दापंत्य जीवन में सुधार लाने हेतु counselling करता है और अधिकांशतः मामले का निदान हो जाता है।

2)

परिवार न्यायालय का पूरा जोर दोनों पक्षों में सुलह कराने का ही रहता है।ये एक civil right है। उपर जो मैंने बताया था कि पत्नी के धमकी देने पर प्राथमिकी दर्ज कराएं वो फौजदारी प्रकृति का मुकदमा है और धारा 9 के तहत दर्ज कराया गया मामला सिविल प्रकृति है।

3)

इस मुकदमें को दर्ज करने के कई फायदे हैं।पहला तो यही कि आप केवल आपसी संबधों में सुधार करा देने की प्रार्थना न्यायालय में करते हैं तो पत्नी के भी समझ में आता है कि संबंध सुधार का केश केवल है तो उसको भी एक राहत रहती है।

4)

लेकिन चुँकि आपने मुकदमा कर दिया है तो यह एक प्रकार से legal threat के तरह भी काम करता है।

5)

 दूसरे पत्नी की मानसिकता न्यायालय में exposed हो जाती है और ये स्पस्ट होने लगती है कि पति की गलती नहीं है।

6)

न्यायालय का भी प्रथम द्रष्टव्या जो महिला के support में motivation होता है वह आपके द्वारा संबंध में सुधार का केश करने से आपके पक्ष में आने लगता है।

7)

इसके बावजूद यदि धारा 498 A का केश पत्नी करती है तो आपको जमानत लेने में न्यायालय का ध्यान आप अपने Re-institution of conjugal right के मुकदमा की ओर दिला सकते हैं और न्यायालय का motivation आपकी ओर होने लगता है।

8)

Legal world के सारे लोग इस धारा 9 के महत्व को समझते हैं। अधिकांश अधिवक्ता सर्वप्रथम इसी धारा को उपयोग करने की सोचता है और उपयोग करता है क्योंकि ये मानवीय संवेदना से भरा हुआ धारा है जिसमें किसी अधिवक्ता को अपने क्लाइंट के घर बस जाने की उम्मीद रहती है और क्लाइंट का बचाव बेहतर होता है।

9)

परिवार न्यायालय भी अक्सर कभी सख्त होकर कभी नरम होकर पति पत्नी को एक गार्जन की तरह समझाता है। डांट डफट करता है। मतलब counselling से अक्सर मामला हल हो जाता है।

हिन्दु विवाह व भरण पोषण अधिनियम की धारा 13 के उपयोग


तमाम उपाय,परिवार न्यायालय के counselling से भी यदि मामले का निदान न हो पाए। पत्नी अड़ी रहे, अपनी बात मनवाने के लिए न्यायालय की भी परवाह न करे तो फिर ऐसे पत्नी से निजात पा लेना ही बुद्धिमानी है।

 धारा  13 के तहत पति के पास options है कि वह अपने पत्नी से तलाक ले ले । सारे उपाय यदि fail हो जाय तो ये अंतिम उपाय है कि दोनों पक्ष अपना रास्ता अलग कर लें।

तलाक के भी कानून में स्पस्ट आधार वर्णित हैं. तलाक से संबधित जानकारी मैने  विस्तृत रूप से अपने पूर्व के आलेख में दी है जानकारी के लिए नीचे लिंंक पर जाएँ।

grounds for devorse ( तलाक के आधार


निष्कर्ष -


निष्कर्ष में सिर्फ इतना ही कहना है कि पति के रूप में आप अपने कर्तब्यों का भली भांति पालन करें। दहेज मांगना या दहेज के नाम पर प्रताडऩा सभ्य समाज में स्वीकार नहीं है। लेकिन यदि पत्नी अपने vested interest के लिए आपको परेशान करती है। मानसिक प्रताड़ना देती है। आप निर्दोष हैं लेकिन भय से चुप चुप रह रहे हैं तो आपकी चुप्पी मामले का निदान नहीं कर सकती।आप आगे आएं और कानून का Help लें।

यदि मन में कोई प्रश्न हो तो आप पूछ सकते हैं।



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