Gandhari Aur Krishna

Gandhari Aur Krishna

गांधारी और कृष्णा

Gandhari aur Krishna, Gandhari aur Krishna Samwad

हवाएँ शांत सी थी,
और सूरज की रोशनी मध्यम
पक्षी भी भूलकर कलरव,
बैठे थे नीड में बेदम ।।

खडे थे वृक्ष भी चुपचाप,
जैसे जम गया हो,
समय का रथ झुंझलाकर,
मानो थम गया हो ।।

था अजीब सन्नाटा,
दिशाओं में भी बेचैनी,
कण कण था बना साक्षी,
कैसी थी ये कहानी ।।

हाय ! कुरूक्षेत्र में आकर,
कैसी की ये लडाई,
अपना ही खून अपनों ने,
थी बेतरतीब बहाई ।।

सियासत और सत्ता की,
अजब ही होती कहानी,
रिश्ता ,नाता ,भाईचारा,
बस आनी है और जानी।।

पांडव और कौरवों में,
लडाई तो सबने देखा था,
लिखा था पटकथा लेकिन,
जो आसमां में उपर बैठा था ।।

है वो कृष्ण मुरारी ,
उसका खेल निराला,
एक अनबूझ पहेली ,
अजब है बाँसुरी बाला।।

मौत बिखरा था जहाँ,
टूटी जीवन की लड़ी,
सौ पुत्रों की वो माँ
थी कुरुक्षेत्र में खड़ी ।।

दुर्योधन, दुःशासन,और सभी,
थे चिर निन्द्रा में लीन,
बस मरघट औ मरघटी सन्नाटा,
सबकुछ रूआंसा औ गमगीन ।।

लोभ,मोह,छल,प्रपंच,
सियासत,सत्ता और दुनियांदारी,
ले आया था भयानक मोड़ पर,
आखों की पट्टी खोले देख रही थी रानी गंधारी ।।
                ( -Continued) ( दुसरे भाग के लिए इस लिंक पर जाएँ -
गांधारी कृष्ण संवाद )

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1) सीता माता का जबाब पार्ट 1

2) सीता माता का जबाब पार्ट 2

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