Sita Mata Ka Jbab part 2
Sita Mata Ka Jbab part 2
सीता माता का जबाब पार्ट 2
Sita Mata Ka Jbab part 2
सीता माता का जबाब पार्ट 2
मैं औरत हूँ ,तुम पुरूष सही,
ताकत लेकिन अधूरी है ,
अस्तित्व के दो पहिये हैं,
दुनियां तभी सिंधुरी है।।( अब आगे ...)
अयोध्या ने मेरा परित्याग किया,
पर काश तुम मेरे साथ होते,
कोई नाव पुरानी भी लेकर ,
जीवन नैया हम खे लेते ।।
अयोध्या ने मेरा परित्याग किया,
पर काश तुम मेरे साथ होते,
कोई नाव पुरानी भी लेकर ,
जीवन नैया हम खे लेते ।।
वह पूछ रही आँचल खींचे,
थे राम खडे आँखें मींचे,
स्तब्ध खडे थे धनुर्धारी,
लगा भूल गये कौशल सारी।।
एक गूढ बात बतलाती हूँ,
कुछ तथ्य मैं समझा जाती हूँ,
हे राम ! जरा ये बतलाना,
हिय हाथ जरा अपनी लाना ।।
पृथ्वी नहीं तो क्या आसमां होता ?
कैसे फिर ये जहाँ होता ?
आधार बिना कैसे पर्वत शिखर ?
मत गहो मौन दे दो उत्तर ।।
गर " सीता " नहींं तो क्या होता ?
फिर जग को कैसे पता होता ?
क्या होते तुम धनुर्धारी,
क्या होते तुम धनुर्धारी,
कैसे चढता प्रत्यंचा धनुष भारी ?
कालचक्र में क्या रवां होता ,
बता दे जरा कैसा होता ,
हे राम ! बता तेरी रामायण,
जैसी है क्या वैसा होता ?
अयोध्या गौरवशाली है,
लव कुश भी बलशाली है,
कुल दीपक अंगीकार करो,
अमानत अपना स्वीकार करो ।।
पर विधना का लेखा है,
कब किसने इसको देखा है,
कौन समझ पाता इसको ,
आडा तिरछा कैसी रेखा है।।
हे सीते आ घर लौट चलो,
अब और नहीं कुछ मुझको कहो,
एक यही रट लगी रही,
हे सीते आ अब लौट चलो ।।
अग्नि परीक्षा लेकर भी जब ,
प्रजा जनों ने तिरस्कार किया,
हे राम बता तब तुमने मुझे,
क्यों ना अंगीकार किया।।
महलों की रानी होकर भी,
दुर्गम पथ पर चली गई,
साथ तुम्हारे रहकर बोलो,
सीता क्यों भला छली गई ।।
औरत से ही क्यों हमेशा,
प्रश्न पूछा जाता है,
अनुत्तरित रहकर हमारा,
प्रश्न शुन्य हो जाता है ।।
उत्तर कुछ भी नहीं शेष था,
स्तब्ध खडे थे धनुर्धारी,
रावण को तो जीत लिया पर,
यहाँ तो जीत गई नारी ।।
भावनाओं का बवंडर,
भास्कर ज्वाला निष्प्राण हुई,
काँप उठी पृथ्वी माई फिर,
सीता अन्तर्ध्यान हुई ।।
- Onkar
पार्ट 1 के लिए इस link पर जांय
1) सीता माता जबाब पार्ट1
अन्य कविताओं के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें ।
2) Urmila aur Laxman
3) फूल की जिद
4)हम तो बस माँ माँ कहते
अयोध्या गौरवशाली है,
लव कुश भी बलशाली है,
कुल दीपक अंगीकार करो,
अमानत अपना स्वीकार करो ।।
पर विधना का लेखा है,
कब किसने इसको देखा है,
कौन समझ पाता इसको ,
आडा तिरछा कैसी रेखा है।।
हे सीते आ घर लौट चलो,
अब और नहीं कुछ मुझको कहो,
एक यही रट लगी रही,
हे सीते आ अब लौट चलो ।।
अग्नि परीक्षा लेकर भी जब ,
प्रजा जनों ने तिरस्कार किया,
हे राम बता तब तुमने मुझे,
क्यों ना अंगीकार किया।।
महलों की रानी होकर भी,
दुर्गम पथ पर चली गई,
साथ तुम्हारे रहकर बोलो,
सीता क्यों भला छली गई ।।
औरत से ही क्यों हमेशा,
प्रश्न पूछा जाता है,
अनुत्तरित रहकर हमारा,
प्रश्न शुन्य हो जाता है ।।
उत्तर कुछ भी नहीं शेष था,
स्तब्ध खडे थे धनुर्धारी,
रावण को तो जीत लिया पर,
यहाँ तो जीत गई नारी ।।
भावनाओं का बवंडर,
भास्कर ज्वाला निष्प्राण हुई,
काँप उठी पृथ्वी माई फिर,
सीता अन्तर्ध्यान हुई ।।
- Onkar
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3) फूल की जिद
4)हम तो बस माँ माँ कहते
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