phool aur bhaura




प्रकृति और प्रेम l phool aur bhaura 

वह लहराता जाता है,
कोई गीत सुनाता जाता है,
परवाह नहीं पथ कंटक की,
गिर गिर कर वह उठ जाता है।।

वह बगिया उसको प्यारी है,
उसकी खोज फुलवारी है,
मद मस्त शराबी सा करता,
यह कैसी यारा यारी है।।

है कठोर शरीर उसकी सुन लो,
हैं दाँत नुकीले मत भूलो,
प्रेम गीत सुनाता मतबाला,
है सहज सरल वो दिलवाला।।

कमल पँखुडियाँँ भींच उसे,
पट अपना है बंद कर लेती,
निःशब्द प्रेम की गुंजन फिर,
कठोरता पिघला देती।।

किस्से राधा ओ मीरा के,                     
गोपियां और बलवीरा के,
प्रेम, प्रेम बस प्रेम प्रेम,
क्या कीमत ? अधम शरीरा के।।

नदियां आतुर बस सागर को,
सागर विशालता पाता है,
उँचे  पर्वत हैं शिखर मौन,
बादलो में छुप वह जाता है।।

प्रकृति का यह प्रेम रूप ,
प्रति पल प्रति क्षण दिख जाता है,
कण कण में जड हो या चेतन,
बस प्रेम अमरता पाता है।।

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                   - Onkar

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