First Information Report , F.I.R.
F.I.R ( प्राथमिकी )
जब कोइ पुलिस के पास किसी ब्यक्ति/ब्यक्ति समुह द्वारा किसी गंभीर (संज्ञेय)अपराध किये जाने की सूचना देने जाते हैं और पुलिस आप पर ही लाल लाल आँखों से गुर्राती है ,तूँ तडाक कर डाँटती है और भगा देती है ....
दरअसल F.I.R. शब्द इतना प्रचलित है कि मामूली से मामूली आदमी भी इसका अर्थ समझता है। इसलिए मुझे यह बताने की और ज्यादा परिभाषित करने की जरूरत नहीं है कि F.I.R क्या है । साथ ही पुलिस का भी ब्यवहार अक्सर वही होता है जो मैंने उपर लिखा । तो million dollar का questionक्या है ??
यदि पुलिस F.I.R. दर्ज ना करे तो ????
ये प्रश्न तो जितने भी लोग इस लेख को पढ रहे होंगे सभी ने कभी न कभी ऐसा वाकया अवश्य देखा और अनुभव किया होगा। किसी अवैध घटना की सूचना जबतक दर्ज नहीं होती जाँच प्रारंभ नहीं होती यानी FIR का दर्ज न किया जाना साफ तौर पर" denial to the justice" है।
यदि कोई पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से इन्कार करे तो निम्न उपाय हैं -
1) वरीय पदाधिकारी के पास घटना के सूचना की प्रति के साथ यह शिकायत भी दर्ज करना चाहिए कि थानाध्यक्ष ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की । अन्य वरीय पुलिस पदाधिकारी को भी साथ ही साथ रजिस्टर्ड डाक से सूचना भेजी जानी चाहिए।
2) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी सूचना की प्रति के साथ शिकायत दर्ज करनी चाहिए ।
3) अनुमंडल जन शिकायत पदाधिकारी ( खासकर बिहार में किसी भी अफसर के द्वारा कार्य से इन्कार करने या लापरवाही करने से रोकने के लिए कतिपय अधिकारों के साथ यह पद कई स्तर पर सृजित है ) के समक्ष शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
4) न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष कंपलेंट दर्ज करानी चाहिए।
5) उन तमाम अफसरों से सूचना के अधिकार के तहत यह पूछना चाहिए के दिये गये शिकायत पर अबतक क्या कार्रवाई हुई है ।
तमाम उपायों के बावजूद इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि न्याय में देरी तो हो ही जाती है ।साथ ही कई ऐसे अपराध भी होते हैं जिसमें तुरंत कार्रवाई अपेक्षित होता है।
माननीय उच्च न्यायालयों सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में कई बार दिशा निर्देश दिये हैं लेकिन कार्यान्वयन के स्तर पर ढाक के तीन पात हैं।
अच्छा यह भी कहा जाता है कि पुलिस कम गंभीर श्रेणी के अपराध जो अंसज्ञेय स्तर के होते हैं उसका प्राथमिकी दर्ज करने से इन्कार कर सकती है । मेरे विचार से यही अपराध को ज्यादा बढावा देता है। यदि छोटी छोटी घटनाओं की शिकायत या घटना घट जाने की आशंका की शिकायत भी दर्ज कर जल्दी से action लिया जाय तो अपराध के रोकथाम में मदद मिल सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 में तो स्पस्ट अंकित भी किया गया है कि घटना की आशंका , या किसी घटना कर दिये जाने का intention की भी सुचना यदि कोई देता है तो आवेदन Non FIR ( अप्राथमिकी ) के तहत दर्ज कर तुरंत action लिया जाना चाहिए। इससे अपराध दर में अवश्य कमी आयगी।
(लेखक एक अधिवक्ता है )
जब कोइ पुलिस के पास किसी ब्यक्ति/ब्यक्ति समुह द्वारा किसी गंभीर (संज्ञेय)अपराध किये जाने की सूचना देने जाते हैं और पुलिस आप पर ही लाल लाल आँखों से गुर्राती है ,तूँ तडाक कर डाँटती है और भगा देती है ....
दरअसल F.I.R. शब्द इतना प्रचलित है कि मामूली से मामूली आदमी भी इसका अर्थ समझता है। इसलिए मुझे यह बताने की और ज्यादा परिभाषित करने की जरूरत नहीं है कि F.I.R क्या है । साथ ही पुलिस का भी ब्यवहार अक्सर वही होता है जो मैंने उपर लिखा । तो million dollar का questionक्या है ??
यदि पुलिस F.I.R. दर्ज ना करे तो ????
ये प्रश्न तो जितने भी लोग इस लेख को पढ रहे होंगे सभी ने कभी न कभी ऐसा वाकया अवश्य देखा और अनुभव किया होगा। किसी अवैध घटना की सूचना जबतक दर्ज नहीं होती जाँच प्रारंभ नहीं होती यानी FIR का दर्ज न किया जाना साफ तौर पर" denial to the justice" है।
यदि कोई पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से इन्कार करे तो निम्न उपाय हैं -
1) वरीय पदाधिकारी के पास घटना के सूचना की प्रति के साथ यह शिकायत भी दर्ज करना चाहिए कि थानाध्यक्ष ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की । अन्य वरीय पुलिस पदाधिकारी को भी साथ ही साथ रजिस्टर्ड डाक से सूचना भेजी जानी चाहिए।
2) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भी सूचना की प्रति के साथ शिकायत दर्ज करनी चाहिए ।
3) अनुमंडल जन शिकायत पदाधिकारी ( खासकर बिहार में किसी भी अफसर के द्वारा कार्य से इन्कार करने या लापरवाही करने से रोकने के लिए कतिपय अधिकारों के साथ यह पद कई स्तर पर सृजित है ) के समक्ष शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
4) न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष कंपलेंट दर्ज करानी चाहिए।
5) उन तमाम अफसरों से सूचना के अधिकार के तहत यह पूछना चाहिए के दिये गये शिकायत पर अबतक क्या कार्रवाई हुई है ।
तमाम उपायों के बावजूद इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि न्याय में देरी तो हो ही जाती है ।साथ ही कई ऐसे अपराध भी होते हैं जिसमें तुरंत कार्रवाई अपेक्षित होता है।
माननीय उच्च न्यायालयों सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में कई बार दिशा निर्देश दिये हैं लेकिन कार्यान्वयन के स्तर पर ढाक के तीन पात हैं।
अच्छा यह भी कहा जाता है कि पुलिस कम गंभीर श्रेणी के अपराध जो अंसज्ञेय स्तर के होते हैं उसका प्राथमिकी दर्ज करने से इन्कार कर सकती है । मेरे विचार से यही अपराध को ज्यादा बढावा देता है। यदि छोटी छोटी घटनाओं की शिकायत या घटना घट जाने की आशंका की शिकायत भी दर्ज कर जल्दी से action लिया जाय तो अपराध के रोकथाम में मदद मिल सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 में तो स्पस्ट अंकित भी किया गया है कि घटना की आशंका , या किसी घटना कर दिये जाने का intention की भी सुचना यदि कोई देता है तो आवेदन Non FIR ( अप्राथमिकी ) के तहत दर्ज कर तुरंत action लिया जाना चाहिए। इससे अपराध दर में अवश्य कमी आयगी।
(लेखक एक अधिवक्ता है )
Comments