Law talk
Law talk on Mohammedon Law

डॉ एस .आर. मायनेनी ने "Jyurisprudence" में Mohammdon Law के निम्न चार श्रोत बताये हैं -
(1) कुरान
(2) सुन्ना
(3) इज्मा
(4) कयास
कुरान - यह कहा जा चूका है कि मुस्लिम विधि का एकमात्र श्रोत क़ुरान ही है l
सुन्ना- सुन्ना का तात्पर्य है "जिसे पैगम्बर साहब ने किया था l " इसका तात्पर्य पैगम्बर की प्रथा और निर्णय से है l इसने पैगम्बर कि प्रथा "हदीस "को जन्म दिया l
इज्मा - मुस्लिम विद्वानों द्वारा स्थापित कार्य
कयास - जजों और मुफ़्ती द्वारा शब्दों का विवेचन को भी मुस्लिम विधि का श्रोत माना गया
गौर फरमाया जाय तो मूल श्रोत तो "पवित्र कुरान" ही है।
Law talk Mohammdon Law
मुस्लिम पर्सनल लॉ आधारित है " MUSLIM PERSONAL LAW (SHARIAT APPLICATION ACT 1937 जो भारत में ब्रिटिश इंडिया के समय पारित हुआ था जो 7 अक्टूबर 1937 से प्रभावी हुआ l
यदि कम शब्दों में इसके सूत्र वाक्य को देखें तो यह LAW विशेषकर Muslim Law के कुछ महत्वपूर्ण सुत्र वाक्य प्राप्त होते हैं -1) " निकटस्थ दूरस्थ को दूर करता है। " सरल शब्दों में कहें तो ये वाक्य Hindu Law की तरह ancestral property में जन्म से हक को स्वीकार नहीं करता है। यदि grandfather के जीवनकाल में ही किसी के पिता की मृत्यु हो जाय तो फिर पौत्र (grandson) अपने grandfather के स्वर्गवास के बाद grandfather द्वारा छोडी गई संपत्ति में दावा नहीं कर सकेगा क्योंकि उसका uncle उसके grandfather के निकटस्थ माने जायगें तदनुसार उसका uncle संपत्ति के उत्तराधिकार से पौत्र को हटा देगा।
2 दूसरा सूत्र वाक्य है बल्कि ये पवित्र कुरान की है दायत है कि " कोई किसी के हक को खत्म नहीं करेगा"
अब इसकी ब्याख्या ये की जाती है कि पिता के जीवन काल में Muslim Law के मुताबिक पुत्र दावा नहीं कर सकता चाहे संपत्ति पूर्वज से प्राप्त हो या अपने कमाई की हो। इस रूप मे यह Hindu Law से भिन्न है। लेकिन चुकि पिता के संपत्ति मे उनके बच्चों का हक समाहित है इसलिए Muslim Law के मुताबिक पिता भी अपनी संपत्ति का हिब्बा (gift) या वसियत एक तिहाई से ज्यादा भुमि का नहीं कर सकता । वसियत तो वह अपने उत्तराधिकारियों के हित में कर भी नहीं सकता ।एक अपवाद यह है कि यदि वह वसियत करता है तो उसे अन्य पुत्रों की भी सहमति लेनी होगी । यदि कई पुत्रों मे कुछ ही पुत्र सहमति देते हैं तो सहमति देनेवाले के अंश के मुताबिक ही वसियत को मान्यता मिल सकेगी। ये वसियत का नियम इसलिए रखा गया कि कमजोर,मजलूम को भी जीवन यापन हेतु संपत्ति दी जा सके। क्योंकि निकटस्थ दूरस्थ को दूर करता है तो जिसके पिता दादाजी के जीवन काल में ही चल बसे हों उनके लिए धन की ब्यवस्था हो सके।3) Muslim Law का तीसरा सुत्र है महिला उत्ततराधिकारी से पुरूष उत्तराधिकारी दुगुना अंश प्राप्त करेगा। इस प्रकार पुत्र पुत्री की तुलना में दुगुना अंश पाता है। इस प्रकार Muslim Law काफी अनूठा है।
दरअसल Muslim Personal Law में उत्तराधिकार ,विवाह, तलाक , संपत्ति की ब्यवस्था जैसे विषय शामिल किए गये हैं।
(part -1)
............Law talk Continued
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