Legal right of Indian mother माँ का अधिकार
भारत में एक माँ की शक्ति (हिन्दू विधि में)
किसी विद्वान ने कहा है कि जब कोई औरत किसी बच्चे को जन्म देती है तो बच्चे का जन्म तो होता ही है लेकिन एक माँ का भी जन्म होता है lअब वो औरत केवल एक औरत भर नहीं है बल्कि विभिन्न शक्तियों से युक्त एक माँ है l
एक औरत के माँ बनने पर उन्हें क्या शक्ति मिलती है ?
हम भारत में हिन्दू विधि में एक माँ के अधिकारों का अध्ययन करते हैं तो पाते है कि एक माँ अपने बच्चे का प्रथम वर्ग उत्तराधिकारी है l हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 एवं 9 में यह अंकित है कि बिना वसीयत किये यदि कोई पुरुष स्वर्गवास हो जाता है तो उसकी संपत्ति प्रथमतः उनके प्रथम वर्ग उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी l हिन्दू विधि के अध्याय 4 में अंकित अनुसूची में माँ प्रथम वर्ग उत्तराधिकारी के रूप में दर्ज है l तो मृतक यदि पुत्र है और माता जीवित है तो माँ अपने पुत्र का उत्तराधिकारी है l अब यदि कोई ब्यक्ति अविवाहित स्वर्गवास हो जाय तो उसका एकमात्र उत्तराधिकारी केवल और केवल मृतक की माँ होगी l मृतक का पिता , भाई ,बहन या अन्य कोई रिश्तेदार मृतक के संपत्ति में दावा करने में सक्षम नहीं है l अब दूसरा विन्दु यह है कि यदि कोई औरत किसी बच्चे को जन्म देती है और वह बच्चा मान लें जन्म लेते ही एक बार दुनिया को देखे रोये और मर जाए lलग रहा होगा कि मै मर जाने जैसी नकारात्मक बात कर रह हूँ तो मैंने केवल एक परिस्थिति कि बात की कि यदि ऐसा हो तो क्या हो ? और ऐसे भी कानून भावनाओं पर नहीं चलता l तो यदि बच्चा जन्म लेते ही मर जाय भले लेकिन वह एक माँ का जन्म तो करवा ही जाता है l अतः उस बच्चे का जो भी हक पूर्वज की संपत्ति में मिलता यदि वह जीवित रहता तो वे सभी संपत्तियां माँ को प्राप्त हो जायगी l
विभिन्न माननीय उच्च न्यायालयों एवं सर्वोच्च न्यायालयों ने यह नियमन दिया है कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का अभिभावक व संरक्षक उसकी माँ होगी l
वास्तविक जीवन में विभिन्न परिस्थितियों व समस्याओं के आलोक में माँ की शक्ति -
अब हम कल्पना करें कि एक ब्यक्ति ऐसा है जो अपनी पत्नी को neglect करता है उसका भरण पोषण आवश्यक खर्च नहीं देता है तो ऊपर बताये गए विधि के अनुरूप एक माँ को क्या क्या options हैं ?
हिन्दू विधि के अनुसार पति के जीवितावस्था में एक पत्नी अपने पति को पूर्वज से प्राप्त संपत्ति में बंटवारा वाद लाने का अधिकार नहीं है l लेकिन एक माँ अपने संरक्षक पुत्र /पुत्री के हित की बात उठाते हुए न्यायलय में बंटवारा वाद दाखिल कर सकती है और बंटवारा करा सकती है l और यदि वह अपने मृतक पुत्र कि माँ है जैसा कि मैंने ऊपर उल्लेख किया है तो वह स्वयं ही उसकी उत्तराधिकारी है lऐसे कई छोटो छोटी बातों और कानून में जादुई विन्दु एवं वास्तविक जीवन में उत्पन्न विभिन्न क़ानूनी समस्याओं को समझने के लिए मुझे follow करते रहें l (लेखक एक अधिवक्ता हैं l )
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