क्या IPC की धारा 498A दे पाता है समस्या का समाधान ?

क्या I P C की  धारा 498 A दे पाता है समस्या का समाधान ?

क्या IPC की  धारा 498A दे पाता है समस्या का समाधान ?, bhartiya mahilaon ki samasya



पति द्वारा पत्नी को कम दहेज का प्रश्न उठाकर प्रताड़ित करने की बात आये दिन हम सुनते हैं। यदि कोई पति  या पति के नाते रिश्तेदार ऐसा  करते हैंं तो इसे संगेय व गैर जमानतीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है।भारतीय दंड विधान की धारा 498 A में इसक विवरण दर्ज है।लेकिन प्रश्न है कि भारतीय परिस्थितियों में क्या ये धारा कोई समाधान दे पाता है ? आइये विश्लेषण करते हैं ?।

भारतीय दंड विधान की धारा 498 A क्या है ?


सर्वप्रथम हम भारतीय दंड संहिता की धारा 498 A के बारे में जानते हैं ।यह भारतीय दंड संहिता के अध्याय 20-क में निम्न प्रकार वर्णित है -

पति या पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में


498 A - किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना-
 जो कोई किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए , ऐसी स्त्री के प्रति
 क्रूरता करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जायगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।

स्पष्टीकरण -   इस धारा के प्रयोजनों के लिए "क्रूरता " से निम्नलिखित अभिप्रेत है :-
            (क) जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससेउस स्त्री को आत्महत्या करने  के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री केजीवन ,अंग या स्वास्थ्य को (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक ) गंभीरक्षति या खतरा कारित करने की संभावना है ; या
           (ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी
नातेदार को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरीकरने के लिए प्रपीड़ित किया जाय  स्त्री को इस कारण तंग करना कि  उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है l

I P C की धारा 498 A या 498 (क) को पढने से स्पस्ट है कि दहेज़ से समबन्धित किसी बात को लेकर यदि पति या पति के सम्बन्धी यदि किसी स्त्री को प्रताड़ित (torturing) करते हैं तो ये धारा लागू होगा । कानून बनाने वाली संस्था ने ये सोचकर इस धारा को बनाया कि कोई स्त्री दहेज़ को लेकर प्रताड़ित नहीं किया जा सके ।

अब आते हैं इस आलेख के मूल उद्देश्य पर कि क्या IP C की  धारा 498 A दे पाता है समस्या का समाधान ?
क्या जो सोच इस धारा को लाने में थी वह मकसद पूरा हुआ या हो रहा है ?

मूल रूप से I P C 498 A को विवाहित स्त्री को दहेज़ संबंधी प्रताड़ना से बचाने हेतु लाया गया था l मतलब लड़की के माँ पिता या भाई का जो भी खर्च शादी में होना होता है वो तो हो चूका होता है ।मामला शादी के बाद पैदा होने से संबंधित है। ये धारा उन महिलाओं के लिए लाया गया है जो विवाहित हैं। यदि विवाहित महिला को दहेज के लिए यदि ससुराल बाले प्रताड़ित करते हैं तब इस धारा का उपयोग होता है।

क्या इससे विवाहित महिलाओं को लाभ मिल पाता है ?


1) अब विचारणीय बिन्दु यही है कि धारा 498 A से क्या महिलाओं को वास्तव में लाभ मिल पाता है ? उत्तर है नहीं। कारण भारतीय परिस्थितियों मेंं शादी के बाद पहले तो भारतीय महिला अपने पति के विरूद्ध फौजदारी मुकदमा करना ही नहीं चाहती और यदि करती हैं तो उनके संबधों में एक गांठ पड़ जाती है। परिवार बिखरने लगता है। मायके बाले कुछ दिन तो सहयोग करते हैं फिर उदासीन होने लगते हैं।स्थिति गंभीर होने लगती है। उच्च वर्ग की महिलाएँ तो खुद को संभाल सकती हैं क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक रहती है लेकिन आम भारतीय महिलाएँ ज्यादा परेशान होती है। शिक्षा का प्रतिशत भी देश में महिलाओं का अपेक्षाकृत कम है ।आर्थिक सुरक्षा का प्रश्न ज्वलंत हो जाता है। मेरे विचार से तो I P C 498 A बहुत लाभकारी साबित नहीं होता है ।परिवार बिखर जाता है सो अलग।

2) इसके आलावे इस धारा का दूसरा पहलु भी है और वह है इस 498 A का दुरुपयोग । देश में इसके दुरूपयोग की खबरें भी मिलती रहती हैं। इसमें खासकर पति के साथ पूरे परिवार यानी सास, ससुर, देवर ,ननद,ननदोई वैगेरह को भी फौजदारी मुकदमें में अभियुक्त बना दिया जाता है। एकतरफ जहाँ महिला के ससुराल बाले परेशान होते हैं वहीं उनके मायके बाले भी अच्छी स्थिति में खुद को नहीं पाते हैं कारण एक तो बेटी की शादी में हुए खर्चे से जिस घर में वे शादी करते हैं उसी घर के विरूद़् उन्हें मुकदमा करना पड़ता है। मुकदमों में  खर्च होता है सो अलग।

3) इस 498 A का  दुरूपयोग इतना ज्यादे होने लगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय  ने भी इसे महसूस किया और एक समय यह आदेश भी पारित किया कि प्राथमिकी दर्ज होते ही गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए एक परिवार कल्याण कमिटी की व्यवस्था की जिसको मामला सौपे जाना था तथा कमिटी के निर्णय आने के बाद ही आगे की कार्यवाही आगे बढनी थी l

देखें निर्णय-


IN THE SUPREME COURT OF INDIA CRIMINAL APPELLATE JURISDICTION CRIMINAL APPEAL NO. 1265 OF 2017 [Arising out of Special Leave Petition (Crl.) No.2013 of 2017]
Rajesh Sharma & ors. …Appellants
Versus
State of U.P. & Anrs. …Respondents
Judgement of SC on 498 A

यद्यपि बाद में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो रोक लगाई थी उसपर विचार करते हुए निम्न बातें कही -

Supreme Court of India has modified its directions issued in  Rajesh Sharma case for preventing misuse of Section 498 A of Indian Penal Code. A three judges' bench led by C J I has withdrawn the earlier direction issued by a two judges bench that complaints under Section 498 A I PC should be scrutinized by Family Welfare Committees before further legal action by police. Though the bench acknowledged that there was misuse of the provision leading to social unrest, it said that Court cannot fill in legislative gaps.

यद्यपि कि एक परिवार कल्याण कमिटी की जो बात रमेश शर्मा केश में न्यायलय ने की थी उसे हटा लिया लेकिन यह महसूस भी किया की धारा 498 A  का misuse भी हो रहा है l इसी तथ्य को महसूस  कर मैंने भी एक आलेख लिखा था जिसे आप पढ़ सकते हैं -

पत्नी करे पति का मानसिक उत्पीड़न तो क्या करें ?

 अब आते  मूल विषय पर कि आखिर क्या उचित हो और क्या
 किया जाना चाहिए कि समस्या  का  समाधान हो   ?


मेरे विचार से आर्थिक सुरक्षा पहला कदम होना चाहिए जिससे कि महिला की तात्कालिक परेशानी दूर हो और जो धमकी ससुराल पक्ष से उसे मिलती है उसका भी निदान हो l यही रमेश शर्मा केश में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया भी था जिसमें एक परिवार कल्याण कमिटी बनाने का दिशा निर्देश सभी जिला में दिया गया था जिसमें मामले का जांच और सुलह का प्रयास किया जाना था तथा रिपोर्ट के बाद ही कार्यवाही आगे बढ़नी थी l
आज भी ऐसे कानून हैं जिसमें भरण पोषण लेने का प्रावधान है लेकिन वे सब मात्र सिविल प्रकृति के हैं l द.प्र.स. की धारा 125 और भरण पोषण अधिनियम के तहत भी आर्थिक सुरक्षा महिला को मिल सकती है लेकिन दहेज़ धमकी और प्रताड़ना वंहा गौण हो जाते है l हिन्दू विवाह भरण पोषण की धारा  9 (re institution of conjugal right) मेरे विचार से सबसे बढियां धारा है जिसमे परिवार न्यायलय दोनों पक्षों में सुलह का प्रयास करते हैं lलेकिन यह भी सिविल प्रकृति का है l

एक नये कानून की व्यवस्था की  जरूरत  ऐसे मामले में महसूस होती है l उपरोक्त वर्णित धारा 9 (re institution of conjugal right) में ही थोड़े बहुत सुधार कर कानून बनाकर  न्यायालय को विशेष अधिकार दिए जाने की जरूरत है l माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने रमेश शर्मा वाद में यही कहा भी था कि जो काम कार्यपालिका को करना है उसे न्यायलय नहीं कर सकती और तभी उन्होंने परिवार कल्याण कमिटी वाले निर्णय को modification किया l
तो मेरे विचार से I P C धारा 498 A कोई सामाधान नहीं दे पाता है l


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